दून पुस्तकालय में ओडिया भाषा और लघु कथाएँ विषय पर प्रस्तुति

दून पुस्तकालय में ओडिया भाषा और लघु कथाएँ विषय पर प्रस्तुति

देहरादून,24 जून, 2025: दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आज सांय उड़िया भाषा और उसके साहित्य विषय पर एक सत्र केंद्र के सभागार में आयोजित किया. इसका प्रारूप अम्मार नकवी द्वारा दृश्य-श्रव्य माध्यम से किया गया। भारतीय साहित्य की समृद्ध परंपरा को समझने और सराहने की श्रृंखला का यह सातवाँ सत्र था.

सत्र की शुरुआत उड़ीसा के भौगोलिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के परिचय और सामान्य रूप से धारणा के साथ हुई. बाद में धीरे-धीरे यह मगधी प्राकृत और गीत गोविंदा जैसे मध्ययुगीन ग्रंथों में इसके मूल और इसके विकास में गजपति साम्राज्य जैसी ऐतिहासिक साम्राज्यों की भूमिकाओं की ओर बढ़ गया। इसके बाद भाषा की संरचना पर ध्यान केंद्रित किया गया,जो कि बांग्ला और तेलुगु की तुलना में प्रभावशाली भाषाओं के रूप में है.

अम्मार नक़वी ने ओडिया की उत्पत्ति सामान्य कुटिला/सिद्धम लिपि से कैसे हुई और कैसे इसकी शाखाएँ फैलीं, इसकि भी जानकारी दी। यह विशेषताएँ अन्य क्षेत्रीय बोलियों, जैसे कोसली-संबलपुरी, चर्यापदों की परंपरा, मानक और कोसली संस्करण के बीच तनाव और घर्षण, विशेष रूप से लिपि और रूपात्मक अंतर, वाक्य संरचना और उच्चारण के चयन में किस तरह भिन्न हैं, इस बात को भी बताया.

बाद में उड़ीसा के आदिवासी साहित्य, इसके पाठ्य इतिहास, प्रतीकात्मकता और सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व तथा आलोचना पर भी वक्ता ने ध्यान केंद्रित किया गया। आदिवासी साहित्य को मुख्यधारा की भाषा के दायरे से परे समझने का प्रयास भी किया गया,जिसमें कोंड जनजाति की तारा तारिणी की किंवदंती, बिहनबोरा की संथाल लोककथाओं जैसे लोकगीत और मौखिक कथन पर जोर दिया गया। आदिवासी भाषा का भाषाई स्वरूप उड़िया से किस तरह अलग है, यह कुई भाषा और इसकी भाषाई जड़ों के उदाहरणों से पता चलता है।

सत्र का दूसरा भाग आधुनिक उड़िया साहित्य के विकास पर केंद्रित रहा ,अम्मार नकवी ने विशेष रूप से बंगाल पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि में, और कैसे इसने औपनिवेशिक ढांचे के भीतर अपनी स्थिति को संभाला और एक स्वतंत्र भाषा के रूप में अपने लिए जगह बनाई इस बात की जानकारी रखी। इसके अलावा प्रिंटिंग प्रेस की भूमिका पर भी विशेष रूप से प्रकाश डाला गय। इसके तहत कटक मिशन प्रेस, आधुनिक टाइप फ़ॉन्ट का विकास, और उत्कल दीपिका जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं की तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भूमिका , आधुनिक ओडिया फ़ॉन्ट और लिपि का निर्माण, ओडिया पहचान का प्रसार जिसके कारण अंततः ओडिशा भाषाई आधार पर संगठित पहला क्षेत्र बन गया पर संदर्भ उजागर किया। अंत में, फकीर मोहन सेनापति, रेबा रे और गोपीनाथ मोहंती जैसे तीन शुरुआती अग्रदूतों और उनकी कहानियों का गहन विश्लेषण किया गया और नंदकिशोर बाल, लक्ष्मीकांत महापात्र और फतुरानंद की कहानियों पर संक्षिप्त चर्चा की गई।

कुल मिलाकर इस सत्र का प्रयास ओडिया साहित्य की समृद्ध साहित्यिक परंपरा को सामने लाना था, जो अक्सर बंगाली और इसके विभिन्न साहित्यिक धाराओं के भीतर तनावों से प्रभावित होती है, जो इसके विकास का प्रतिबिंब है। लोगों ने इस बाबत सवाल-जबाब भी किये.
केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने प्रारम्भ में सबका स्वागत किया.
कार्यक्रम के दौरान शहर के कई साहित्यकार, लेखक, साहित्य प्रेमी, सहित प्रो. सुभाष थलेड़ी, अनिल नौरिया, छवि मिश्रा, बिजू नेगी, डॉ. लालता प्रसाद, साहब नक़वी, जगदीश सिंह महर,सुंदर सिंह बिष्ट,अरुण कुमार असफल, आलोक सरीन, डॉ. अतुल शर्मा, भारत सिंह रावत आदि उपस्थित रहे.

One thought on “दून पुस्तकालय में ओडिया भाषा और लघु कथाएँ विषय पर प्रस्तुति

  1. Understanding game odds is key to enjoying casino experiences! Platforms like 99win slot offer a huge variety, but responsible play is always best. Quick registration makes getting started easy, too! 😉

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

!-- Google tag (gtag.js) -->